Thursday, November 21, 2013


अहले सुबह निकलती हूँ घर से ,,


सर्द हवाओं को झेलते ,,

 न जाने कितनी शिकायतों को ओढ़े ,,

 मांझी के ज़ख्मों का हिसाब - 

किताब करते ,,

बज़ट को टटोलते ,,,

रोटी की तलाश में //
पर तभी तक , 
जब तक नज़र नहीं पड़ती उस ६/७ साल के बच्चे पर / 

काँधे पे लिए हुए कागज़ी बोझ का बस्ता ,,

अपने आस - पास के हालात से अनजान ,,
 लाख पढ़ना चाहो पर उसके चेहरे पर कुछ भी भाव नहीं दिखता ,, सपाट / ,, 

उछलते हुए जा रहा होता है स्कूल /

ख़ुशी से नहीं ,, 

अब एक ही पैर से कोई चल तो नहीं सकता ना...............

 उसे देखने के बाद ज़िन्दगी से कोई शिकायत नहीं होती मुझे ,
,
 हाँ पर वो बच्चा मुझे सबसे बड़ा गुरु नज़र आता है ,, 

जो इस हाल में होकर भी ज़िन्दगी की गिनती सिखाता है हमें ,,,,,,,, /

Regards to tht CHILD -

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