अहले सुबह निकलती हूँ घर से ,,
सर्द हवाओं को झेलते ,,
न जाने कितनी शिकायतों को ओढ़े ,,
मांझी के ज़ख्मों का हिसाब -
किताब करते ,,
बज़ट को टटोलते ,,,
रोटी की तलाश में //
पर तभी तक ,
जब तक नज़र नहीं पड़ती उस ६/७ साल के बच्चे पर /
काँधे पे लिए हुए कागज़ी बोझ का बस्ता ,,
अपने आस - पास के हालात से अनजान ,,
लाख पढ़ना चाहो पर उसके चेहरे पर कुछ भी भाव नहीं दिखता ,, सपाट / ,,
उछलते हुए जा रहा होता है स्कूल /
ख़ुशी से नहीं ,,
अब एक ही पैर से कोई चल तो नहीं सकता ना...............
उसे देखने के बाद ज़िन्दगी से कोई शिकायत नहीं होती मुझे ,
,
हाँ पर वो बच्चा मुझे सबसे बड़ा गुरु नज़र आता है ,,
जो इस हाल में होकर भी ज़िन्दगी की गिनती सिखाता है हमें ,,,,,,,, /
Regards to tht CHILD -
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