सूरज कायर है ,
तभी तो निकालता है दिन में ही
जब जाग चुकी होती है दुनिया
भीड़ बिछी होती है सडकों पर
परिंदे कर रहे होते हैं चहल - कदमी इर्द - गिर्द
पर चाँद कायर नहीं
बेख़ौफ़ निकलता है चीर कर सीना अँधेरे का
काँधे पे लिए हौसला - हिम्मत हिमालय सा
चाँद जानता है तन्हा चलना
खामोश रहना
आहिस्ता - आहिस्ता अँधेरे को निगलना
तभी तो अच्छा लगता है मुझे
जब कहते हो तुम मुझे -- '' चाँद '' //
कल्याणी कबीर ,, 28/12/2013 //