Wednesday, January 15, 2014


सुनो सियासत के शातिर मदारी ,,   


सुनो सियासत के शातिर मदारी ,,

एक दिन मेरी भूख तुम्हारे दरवाज़े पर जाकर 

चीखेगी ,

चिल्लाएगी ,,

शोर मचाएगी ,,,
छीनेगी तुम्हारे पालतू कुत्ते से अपने हिस्से की रोटी
और हमारी उदास आँखें तुम्हारी गाड़ियों से भी तेज़ ख्वाब बुनेंगी
उस दिन अपनी नफ़रत को स्याही बनाकर

हम लिखेंगे दास्ताने बर्बादी तुम्हारी
और फिर उस बगावत के सारे हर्फ़
तैरेंगे फ़िज़ाओं में गीत बनकर 

करेंगे हमारे हक़ की बात
बताएँगे कि जम्हूरियत तुम्हारे घरों की दीवारों पर लटका कैलेण्डर नहीं है
जिसे तुम पलट दो अपने फ़ायदे देखकर
बल्कि ये पन्ने हैं हमारी तक़दीर के
जिसे हम ही लिख सकते हैं
अपनी ताकत , हिम्मत और कोशिश की कलम से
और गर जरुरत पड़ी तो
तलवार से भी ..........// Kalyani Kabir//