तुम्हें पाने की ख्वाहिश नहीं थी
कोशिश भी नहीं की
पाया भी नहीं तुझे
मैं तो सिर्फ डुबोना चाहती थी
अपने ज़ख्म , दर्द , नासूर को
तुम्हारे वजूद के समंदर में
इस उम्मीद में कि तुम
नहीं मांगोगे इसके एवज़ में
मेरे वजूद से ,,,,, अपने नाम कोई हिस्सा ...... /