, तुमने हाथ पकड़ा था ,,
और चल पड़े थे कदम गुलाबों के शहर में ,,
फिर अचानक तन्हा कर दिया तुमने ,,
जब आँखें खुली तो सारे गुलाब नुकीले काँटों में बदल चुके थे .......
लौट रही हूँ अब तन्हा ,,,,,,,,,,,,
जब जी चाहता है बिखेर देती हो मुझे तुम ज़िन्दगी ,,,,
गर ख़त्म हो गई मैं तो ....??
किससे निभाओगी दुश्मनी ,,,
कहाँ मिलेगी तुझको मुझ जैसी रकीब ........??
kalyani kabir