Saturday, October 19, 2013


, तुमने हाथ पकड़ा था ,,
और चल पड़े थे कदम गुलाबों के शहर में ,,
फिर अचानक तन्हा कर दिया तुमने ,,
जब आँखें खुली तो सारे गुलाब नुकीले काँटों में बदल चुके थे .......
लौट रही हूँ अब तन्हा ,,,,,,,,,,,,
जब जी चाहता है बिखेर देती हो मुझे तुम ज़िन्दगी ,,,,
गर ख़त्म हो गई मैं तो ....?? 
किससे निभाओगी दुश्मनी ,,, 
कहाँ मिलेगी तुझको मुझ जैसी रकीब ........??

kalyani  kabir  

Friday, October 18, 2013


..............हम  बुरे  हैं

जी,,  हम  बुरे  हैं  क्योंकि  ज़ुबान  रखते  हैं ,
जवाब  बिछाते  है  तेरी  राहों में ,  तेरे दर  पे  सवाल  खड़े  करते  हैं  ,
प्यारे  होते  गर  बे- जुबान  होते ,
पी जाते ज़हर  इब्ने  -  इंसा  की  तरह  बिना  उफ्फ्फ्फ़  किये  ,
मर  जाते  गर  तुम्हारे  दिए  अंधेरों में  ओढ़कर  खामोशी  ,
पर  जीना  चाहते  हैं  ,  बहाना  चाहते  हैं  ,,
अपने  हिस्से    की   ''  ज़मीं    '' की  बात  कर  
टूटने  से  खुद  को  बचाना  चाहते  हैं  ,
तभी तो  चुभते  हैं  तुम्हें  ,,
क्योंकि  सीखा  नहीं  हमने  
कल  ,  आज  और  कल  के  बीच  लकीर  खींचना .
हमारी  सोच  की  गहराई  करवट  नहीं  बदल  पाती  ,
नहीं  टाँग  पाते  किसी  भी  रिश्ते  को  हम खूँटी  में तुम्हारी  तरह   ,
गर  पी  जाते  तल्खियां  धोखे  की  तो  वाह  -  वाही  मिलती  हमें  
पर  गुनहगार  हैं  हम 
पढ़ते  हैं  ज़िन्दगी  को  पन्ने  - दर  - पन्ने    नहीं  
एक  मुकम्मल  किताब  की  तरह  ..../kalyani kabir /