..............हम बुरे हैं
जी,, हम बुरे हैं क्योंकि ज़ुबान रखते हैं ,
जवाब बिछाते है तेरी राहों में , तेरे दर पे सवाल खड़े करते हैं ,
प्यारे होते गर बे- जुबान होते ,
पी जाते ज़हर इब्ने - इंसा की तरह बिना उफ्फ्फ्फ़ किये ,
मर जाते गर तुम्हारे दिए अंधेरों में ओढ़कर खामोशी ,
पर जीना चाहते हैं , बहाना चाहते हैं ,,
अपने हिस्से की '' ज़मीं '' की बात कर
टूटने से खुद को बचाना चाहते हैं ,
तभी तो चुभते हैं तुम्हें ,,
क्योंकि सीखा नहीं हमने
कल , आज और कल के बीच लकीर खींचना .
हमारी सोच की गहराई करवट नहीं बदल पाती ,
नहीं टाँग पाते किसी भी रिश्ते को हम खूँटी में तुम्हारी तरह ,
गर पी जाते तल्खियां धोखे की तो वाह - वाही मिलती हमें
पर गुनहगार हैं हम
पढ़ते हैं ज़िन्दगी को पन्ने - दर - पन्ने नहीं
एक मुकम्मल किताब की तरह ..../kalyani kabir /
No comments:
Post a Comment