Saturday, December 28, 2013

चाँद  कायर  नहीं  ,,,,,,,,



सूरज  कायर  है  ,
तभी  तो  निकालता  है  दिन  में ही  
जब  जाग  चुकी   होती  है   दुनिया  
भीड़  बिछी  होती  है  सडकों पर  
परिंदे  कर रहे  होते  हैं  चहल  - कदमी  इर्द - गिर्द 

पर  चाँद  कायर  नहीं  
बेख़ौफ़  निकलता  है  चीर  कर सीना  अँधेरे  का 
काँधे  पे लिए  हौसला  -  हिम्मत  हिमालय  सा 
चाँद  जानता  है  तन्हा  चलना  
खामोश रहना 
आहिस्ता  -  आहिस्ता  अँधेरे  को  निगलना 
तभी  तो अच्छा  लगता  है  मुझे 
जब  कहते  हो  तुम  मुझे --  ''  चाँद ''  // 

कल्याणी  कबीर   ,, 28/12/2013 //

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