Friday, September 6, 2013

........एक सेठ था .कहता था कि वो तन्हा है और ग़मगीन भी . एक मैना भी थी जो रहती थी सूने अँधेरे जंगल में ,, उदास थी वो भी अपनी ज़िन्दगी से . दोनों मिले साझा किया अपना दुःख , अपनी तकलीफ . एक रिश्ता बनाया नहीं तोड़ने के लिए ,, चाहत और यकीं के बल पर , बिना किसी कागजी हस्ताक्षर और हलफनामे के . फिर एक दिन अचानक सेठ तोता ले आया . बेरूख होने लगामैना से . उसे अब मैना से उसका रिश्ता तोड़ने लायक लगने लगा . सेठ शातिर था पर मैना संवेदनशील . वो सेठ के इस रवैये को बर्दाश्त नहीं कर पाई . झगड़ने लगी , बोलने लगी उलटी - पुलटी बात . बस फिर क्या था ,, बहाना मिल गया सेठ को मैना से पीछा छुडाने का , बोझ सा लगने लगा था उसे अब ये रिश्ता ,,मैना के चीख के पीछे छिपी चाहत उसे नज़र नहीं आती थी अब . निकाल फेंका उसने मैना को अपनी ज़िन्दगी से . उसे तो वैसे भी अब तोता मिल गया था अपनी शामें रंगीन करने के लिए . वो चाहता था मैना फिर चली जाए उसी अँधेरे जंगल में ,बिना सवाल खड़े किये ,किसी बेजान सामान की तरह . मैना फिर तनहा ,,चली गई जंगल ,,,जीने नहीं,,,मौत का इंतज़ार करने ...... कितनी बुद्धू थी न मैना ? क्या जरुरत थी किसी को इतना चाहने की .////
BY नाम तो याद है ना मेरा :---- Kalyani Kabir---

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