Friday, September 6, 2013

दुःख तो बहुत होता है जब किताबें कुछ और पढ़ाती हैं और ज़िन्दगी कुछ और ,,
उसूलों , रवायतों का '' क , ख , ग '' पढ़कर भी जब उलझ जाती हैं साँसें जज्बातों के भूगोल में ,
कदम रोते हैं जब .... रिवाजों के रास्ते और ख़्वाबों की गली जुदा नज़र आते हैं ,,
पर ,,
मुश्किल है ,, अपने भीतर रह रही उस '' मैं '' को रोकना
जो सफ़ेद बालों में चेहरा छुपाये ,, अब भी ढूँढती रहती है ,
मुस्कुराने की वज़ह .......... उनकी आँखों में //


kalyani  kabir

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