जानती हूँ दरारें पड़ जायेंगी उस ज़मीं पे ,, जहाँ खड़ी हूँ /
छूट जाएगा वो साथ जिस पे यकीं है फिलवक्त /
खत्म हो जाएगा वो सिलसिला जो अपना सा लगता है अभी /
फिर भी खड़ी हूँ उसी मोड़ पे ,,,, उसी जगह ,,
क्योंकि चाहती हूँ टूट जाना ,, बिखर जाना अब
बहुत ही छोटे - छोटे टुकड़ों में ...
ताकि फिर कभी ज़िन्दगी में कोई तोड़ना भी चाहे तो
मेरे और टूटने की गुंजाइश न रहे ....................
:--- kalyani kabir
छूट जाएगा वो साथ जिस पे यकीं है फिलवक्त /
खत्म हो जाएगा वो सिलसिला जो अपना सा लगता है अभी /
फिर भी खड़ी हूँ उसी मोड़ पे ,,,, उसी जगह ,,
क्योंकि चाहती हूँ टूट जाना ,, बिखर जाना अब
बहुत ही छोटे - छोटे टुकड़ों में ...
ताकि फिर कभी ज़िन्दगी में कोई तोड़ना भी चाहे तो
मेरे और टूटने की गुंजाइश न रहे ....................
:--- kalyani kabir
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